बन्द दरवाज़ों के पीछे,
छुपी हैं कहानियाँ,
दे दस्तक उकसातीं हमें,
खोलने को कुंडियाँ,
करतीं हैं गुदगुदी,
फुसफुसाती हैं कान में,
बहुत अफसाने छुपे हैं,
इन दीवारों और खंबों में।
लगता है डर,
जब खुलेंगें यह खिड़की-दरवाज़े,
क्या-क्या कहर ढाएँगे,
वह छुपे हुए अफसाने,
रहने दो इन कहानियों को,
तुम कहानी,
इन राज़ों की सिहरन ही है,
बहुत डरावनी।
जी लो जिंदगी को जैसे यह ख्वाब है,
इसके पन्नों को समझने का क्या फ़ायदा,
आखिर सबका वही एक मुक़ाम है।
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