डरता हूँ

समय और माहोल देख, डरता हूँ:

कुछ ग़लत ना बोल दूँ,
कुछ ग़लत ना सीख लूँ,
कहीं बढ़ती संकीर्णता का हिस्सा ना बन जाऊँ,
कहीं अपने पड़ोसी का दुश्मन ना हो जाऊँ,
तेरी बहन की पढ़ाई ना रोक दूँ,
तेरी माँ को घूँघट में ना बंद कर दूँ,
तेरे कच्चे ख़्वाब ना तोड़ दूँ,
तेरी नयी सोच को ना दबा दूँ,
अपने आत्मविश्वास को ना खो बैठूँ,
अपनी आस्था से ना लड़ जाऊँ…

फिर भी अगर यह वक्त ना बदला तो,
डरता हूँ कि जीने का हौसला ना खो दूँ।

फिर सोचता हूँ:

कालचक्र से कौन जीता
और समय भी है चंचल
तो रख धैर्य और कर इन्तज़ार
करने दे समय को अपना काम।

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