परेशान हूँ की परेशानी नहीं है

परेशानी का मंज़र कहाँ गया,
सब शाँत और सुनहरा क्यों हो गया,
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या जिंदगी से कहीं कुछ खो गया?

दिल में खलबली क्यों नहीं है,
पैरों की चहलकदमी क्यों रुकी है,
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या वज़ूद हमारा नाकाम हो गया?

आखोँ में हँसी क्यों खिली है,
होंठों पे गीत क्यों थिरकतें हैं,
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या आईने की ज़गह पुराना फोटो देख लिया?

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