समय और माहोल देख, डरता हूँ:
कुछ ग़लत ना बोल दूँ,
कुछ ग़लत ना सीख लूँ,
कहीं बढ़ती संकीर्णता का हिस्सा ना बन जाऊँ
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वो, गुमराह
उस तीसरे आदमी ने कुछ ख़्वाब देखे थे
जो पूरे नहीं हुए।
पर उस बच्चे ने तो अभी ख़्वाबContinue reading वो, गुमराह →