आसमान था भयभीतपरन्तु धरती थिरक रही थी,चारों तरफ डमरू कीआवाज़ फैली हुई थी। चन्द्र जटा से निकलबादलों में छुप गया था,गंगा भी सिमट करपत्थरों में दुबक गयीं थीं। नीलकंठ की बिखरीं लटाएंइधर-उधर उड़ रहीं थीं,चेहरे पर गुस्से सेभ्रकुटी तनी हुई थीं। घूमते नयनों मेंसतरंग भाग रहे थे,हृदय की धड़कनों सेमानो दौड़ लगा रहे थे। पसीनेContinue reading रौद्र का मोहक रूप