ना मन्दिर का आँगन,
ना बाबुल की गलियाँ,
रुकें वहीं कदम,
जहाँ दिल को मिले दस्तक,
थम जा, ठहर जा,
यही है तेरी सुकून की छैया।
ओढ़ ले, सोख ले,
समय का क्या पता,
धूप होगी या छाँव,
जिन्दगी का अगला पन्ना।
भींच ले सुकून को
मन में ऐसे,
फिसल ना जाए बन
रेत के दाने जैसे।
फिर धूप हो या छाँव,
किसको है चिंता,
मिलेगा तुझे सुकून,
क्योंकि मन ही है घर तेरा,
ना मिट्टी की दीवारें,
और ना व्रक्ष की छैया।
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