समय और माहोल देख, डरता हूँ:
कुछ ग़लत ना बोल दूँ,
कुछ ग़लत ना सीख लूँ,
कहीं बढ़ती संकीर्णता का हिस्सा ना बन जाऊँ
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खामोशी
लबों पर शब्द आते आते रह गए,
जो कहना चाहते थे वह सिसकियों में बह गए,
अब नयी खामोशी है फैली सुकून से भरी,
ऐ ज़िंदगी, तेरे इस नए पहलू में हम रम गए।Continue reading खामोशी →
वो, गुमराह
उस तीसरे आदमी ने कुछ ख़्वाब देखे थे
जो पूरे नहीं हुए।
पर उस बच्चे ने तो अभी ख़्वाबContinue reading वो, गुमराह →
परेशान हूँ की परेशानी नहीं है
परेशानी का मंज़र कहाँ गया,
सब शाँत और सुनहरा क्यों हो गया,
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या जिंदगी से कहीं कुछ खो गया?Continue reading परेशान हूँ की परेशानी नहीं है →
तजुरबे
कुछ यादों की परतों में दबाते गये,
कुछ समय के अंधड़ उड़ाते गए,
ऐ ज़िंदगी तेरे तजुरबों को जीते,
कुछ आबाद तो कुछ बर्बाद होते गये।Continue reading तजुरबे →
तैरना
किनारे किनारे चले तो क्या मज़ा,लहरों की तरह टूट जाओगे,बीच में उतर गोते लगा तो देखो,मछली की तरह तैरने लगोगे।
बहने दो
बहने दो अश्कों कों,कमसकम दिलवाले तो हैं हम; बहने दो दरिया को,गुनगुनाने का रखती तो है दम; बहने दो हवा को,बादलों से जूझने का नहीं इसे डर; बहने दो जिंदगी को,कमसकम ठरहें तो नहीं हैं हम; और बहने दो लबों पर मुस्कान को,ज़माना नहीं जान पाएगा आपके गम।
झोले में दुनिया
एक झोले में दुनिया चली,रख कपड़े, साबुन और तेल,यादों के धागे लपेट,रुक्मय्या चली,एक झोले में दुनिया चली। छोड़ आँगन और गाँव की गली,छोड़ दादू, भोला और छोटी,बापू और अम्मा की गोदी,रुक्मय्या चली,एक झोले में दुनिया चली। खेत बिक गये थे भैया,किसी को था कमाना रूपय्या,ले परिवार की ज़िम्मेदारी,रुक्मय्या चली,एक झोले में दुनिया चली। छोड़ पीछेContinue reading झोले में दुनिया →