समय और माहोल देख, डरता हूँ:
कुछ ग़लत ना बोल दूँ,
कुछ ग़लत ना सीख लूँ,
कहीं बढ़ती संकीर्णता का हिस्सा ना बन जाऊँ
Continue reading डरता हूँ
खामोशी
लबों पर शब्द आते आते रह गए,
जो कहना चाहते थे वह सिसकियों में बह गए,
अब नयी खामोशी है फैली सुकून से भरी,
ऐ ज़िंदगी, तेरे इस नए पहलू में हम रम गए।Continue reading खामोशी →
परेशान हूँ की परेशानी नहीं है
परेशानी का मंज़र कहाँ गया,
सब शाँत और सुनहरा क्यों हो गया,
जब ऐसा होता तो क्यों लगता,
क्या जिंदगी से कहीं कुछ खो गया?Continue reading परेशान हूँ की परेशानी नहीं है →
बहने दो
बहने दो अश्कों कों,कमसकम दिलवाले तो हैं हम; बहने दो दरिया को,गुनगुनाने का रखती तो है दम; बहने दो हवा को,बादलों से जूझने का नहीं इसे डर; बहने दो जिंदगी को,कमसकम ठरहें तो नहीं हैं हम; और बहने दो लबों पर मुस्कान को,ज़माना नहीं जान पाएगा आपके गम।
झोले में दुनिया
एक झोले में दुनिया चली,रख कपड़े, साबुन और तेल,यादों के धागे लपेट,रुक्मय्या चली,एक झोले में दुनिया चली। छोड़ आँगन और गाँव की गली,छोड़ दादू, भोला और छोटी,बापू और अम्मा की गोदी,रुक्मय्या चली,एक झोले में दुनिया चली। खेत बिक गये थे भैया,किसी को था कमाना रूपय्या,ले परिवार की ज़िम्मेदारी,रुक्मय्या चली,एक झोले में दुनिया चली। छोड़ पीछेContinue reading झोले में दुनिया →
हम-तुम
चाँद ना होता, तो तारे ना होते,तारे ना होते, तो ख़्वाब ना होते,ख़्वाब ना होते, तो किस्से ना होते,किस्से ना होते, तो शिकवे ना होते,शिकवे ना होते, तो हम तुम्हारे होते।
अनजानी राहें
जो राह कहीं ना जाती हो
उस राह की अब कोई चाह नहीं।
छोटी-छोटी पगडंडियाँ
जो खो जाती हैं इधर-उधर
उन डगरों पर जाना नहीं
क्यूँ उनका कोई मुक़ाम नहींContinue reading अनजानी राहें →
यहाँ सब चलता है मेरे यार
सड़क पर जा रहे थे हम तन कर,माँग ली जगह बस गजभर,हॉर्न दिया, डिपर दिया, इशारा भी किया,फिर भी बाइक ने रास्ता नहीं दिया,गाड़ी में बैठे दोस्त ने दिया उकसा,क्या यही है रुतबा यहाँ आपका?बस जेब से निकाल हमने तमंचा चला दिया,बाइक वाले का सिर धड़ से उड़ा दिया,दोस्त हमारा आ गया सकते में,बोला मियाँContinue reading यहाँ सब चलता है मेरे यार →
शकुन्तला का सत्य
फूल हैं फीके-फीके से,पत्तियाँ कच्ची-कच्ची सी,हवा में खुशबू नहीं,बरसात है सूखी सूखी सी. सूरज में कोई ताप नहीं,चिड़ियों में आवाज़ नहीं,वीणा की मधुर धुन भी छौने,लगती साँप की फुफकार सी. मन कैसा विचित्र है होता,सोचती व्याकुल शकुन्तला,जैसा चाहे वैसा देखता,सत्य के रूप हर पल बदलता. दुखी आँखें अशान्त मन मेरा,जानती हूँ सब माया का फेरा,फूलोंContinue reading शकुन्तला का सत्य →