एक झोले में दुनिया चली,
रख कपड़े, साबुन और तेल,
यादों के धागे लपेट,
रुक्मय्या चली,
एक झोले में दुनिया चली।
छोड़ आँगन और गाँव की गली,
छोड़ दादू, भोला और छोटी,
बापू और अम्मा की गोदी,
रुक्मय्या चली,
एक झोले में दुनिया चली।
खेत बिक गये थे भैया,
किसी को था कमाना रूपय्या,
ले परिवार की ज़िम्मेदारी,
रुक्मय्या चली,
एक झोले में दुनिया चली।
छोड़ पीछे कुछ सपने,
दोस्त, खेत और झरने,
एक नए जहाँ को जीतने,
रुक्मय्या चली,
एक झोले में दुनिया चली।
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