चाँद-चाँदनी की झड़प

चाँद ने कहा
आजा मेरे पास
चाँदनी बोली
जा जा, जारे जा
मैं तो चली
तारों के पास।

तू है छलिया
जग का मन बसिया
रूप हैं तेरे कितने हज़ार
कभी कंगन, कभी गढ़ा
कभी टूटी मठरी
तो कभी छलकता जाम,
कैसे करूँ निरमोही
तुझ पे विश्वास?

सूरज का ताप
देता जग को आँच
उसकी रोशनी से
चलता यह संसार
एक तू है गुस्सैल
मन में तेरे मैल
अपने मोह में
तूने छीना जल का चैन।

ओ बेईमान
बात मेरी मान
संभल जा, नहीं तो
मैं चली तारों के पास।

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