कृष्णा की राधा

नटखट मन बावरा,
बोले राधा राधा,
चल बैठें यमुना तीरें,
बातें करें धीरे धीरे,
कदम्ब के हार बनाकर,
तुम को सजाकर,
कुछ देर देखूँ,
फिर बाँसुरी सुनाऊँ,
नटखट मन बावरा,
बोले राधा राधा।

मटकी जो तेरी कमरिया,
फिसल गयी बाँसुरिया,
देखा जो तुमने कन्नखिया,
भूल गया यह दुनिया,
चमकती जब बिजुरिया,
दिखती हैं तेरी दँतिया,
नटखट मन बावरा,
बोले राधा राधा!

जलन होती है पनघट से,
पी लूँगा उसे एक घूँट में,
वीणा के तारों में छिपके,
बजूँगा तेरी उँगलियों से,
जब-जब तुम निंद्रा को गए,
स्रष्टि बचा हम वापस आ गए,
नटखट मन बावरा,
बोले राधा राधा।

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