एक था कव्वा कायर सा,
नाम था उसका डरपोक झा,
डरता था वो उड़ने से,
तेज़ था पर वो लड़ने में।
एक दिन बोली चींटी उससे,
सैर कराओ हवा में उड़के,
डरपोक झा बोला चिल्ला के,
रुपये लूँगा बहुत सारे।
चींटी बोली नोट दिखा के,
नहीं अकड़ते मेरे प्यारे,
यह ले सौ रुपये का नोट,
चल अब जल्दी हवा की ओर।
डरपोक झा अब क्या करे,
उड़े तो उसको दर लगे,
ना उड़े तो रुपये जायें,
चींटी को कैसे भगायें?
झपटा वो चींटी के ऊपर,
सोचा उसको भगा दूँ लड़कर,
चींटी थी पर बड़ी सयानी,
समझी कव्वे की शैतानी।
खट से पैर पे काटा उसने,
डरपोक झा उड़ गया दर्द से,
पहुँचा जब वो आसमान में,
खुश हो गया खुली हवा में।
झटपट नींचे उतरा वो,
बोला चींटी चलो सैर को,
चींटी बैठी उसके सिर पर,
हवा में उड़ गए दोनों मिल कर।
कव्वे का दर हुआ छूमंतर,
डरपोक झा बन गया बहादुर।
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