आकाश में था बादल,
उस पर थे लेटे नारद,
उठते, बैठते, करवटें बदल,
ऊब गये थे बेचारे नारद।
तीनों लोकों का कर भ्रमण्ड,
चुगलियाँ कर तोड़ भ्रम,
लोगों में भर द्वेष अनंत,
कोहराम फैला चुके थे नारद।
तब शिव और हरि से पड़ी डांट,
बोले बढ़ाये झगड़े तो सजा जान,
गुफा में रहोगे दिन-रात,
फँस गए थे बेचारे नारद।
लगे टहलने परेशान मन,
बेखबर उड़ते बादलों पर,
जब सुना दूर से संगीत स्वर,
मुस्कराने लगे हमारे नारद।
माँ लक्ष्मी को था सीखना संगीत,
नारद पर भी था समय अत्यधिक,
पहुँचे वैकुंठ पा मौका एक दिन,
हरि की अनुमति माँगने नारद।
हे नारायण, बोले कर प्रणाम,
संगीत निपुण मैं आपका दास,
अति कला-कौशल लक्ष्मी माँ,
क्या संगीत सिखा सकता हूँ मैं नारद?
सहझ भाव बोले हरि,
तुम हो पूर्णत: कला शील,
मुझे भी संगीत है प्रिय अति,
परन्तु एक अड़चन है प्रिय नारद।
आँख-ओझल नहीं करता अपनी लक्ष्मी,
कोहराम होता जो गलत जगह पहुँचतीं,
परन्तु यहाँ कक्षा करी तो बाधा पड़ेगी,
शान्ति हवन चल रहा है नारद।
प्रणाम कर चले नारद दुखी,
मन में मची थी खलबली,
कुछ तो है जुगत लगानी,
हरि-लक्ष्मी का संग-रस चाहते थे नारद।
इंद्रधनुष पर था एक आलय,
खोला उसमें संगीत विध्यालय,
देवों-असुरों को सिखाने सुर-लय,
कौन जाने क्या चाहते थे नारद?
विध्यालय का था पहला दिन,
विध्यार्थी पहुँचे अति उत्साहित,
असुरों को देख थे देव कुपित,
सब पर नज़र रखे थे नारद।
हरि आए माँ लक्ष्मी संग,
देने गुरु-शिष्यों को प्रोत्साहन,
वातावरण था अत्यन्त मनमोहक,
संगीत में झूम रहे थे नारद।
हरि-प्रणाम को असुर उठे,
यह देख देवता दौड़े आगे,
बोले प्रथम-प्रणाम हम करेंगे,
क्या हमारा नहीं हक यह गुरु नारद?
शिष्यों को देखा गुरु ने,
बोले तुम सब प्रिय मुझे,
परन्तु पहला प्रणाम कौन करे,
खुद करो निर्णय, बोले गुरु नारद।
यह सुन देवता देने लगे धक्का,
असुरों को चाहते थे पीछे खदेड़ना,
शुरू हो गया दोनों में झगड़ा,
मंद-मंद मुस्कराने लगे नारद।
तमाशा देख रहे थे हरि चुपचाप,
समझ रहे थे नारद की चाल,
माँ लक्ष्मी पर हो रहीं थीं हताश,
बोलीं शान्त करायें सबको, प्रिय नारद।
जोड़ हाथ बोले नारद, माँ,
मामला यह हरि और शिष्यों का,
बिन आशीष ना जाएँ असुर और देवता,
‘हे नारायण’ बोल चुप हो गए नारद।
आसमान में फेरा हरि ने हाथ,
फैला सब तरफ तेज चमकार,
चरणों में गिरे शिष्य समभाव,
मन-ही-मन गुनगुना रहे थे नारद।
आशीर्वाद दे बोले हरि,
विध्यालय बन्द करना जरूरी,
देव-असुर शिक्षा लेंगे संग यदि,
झगड़े निपटाते रह जाएँगे गुरु नारद।
फिर ज़ोर से हँसे हरि,
बोले मुनिवर जीत हुई आपकी,
लक्ष्मी को शिक्षा देने संगीत की,
पहुँचिए वैकुंठ शीघ्र, प्रिय नारद।
आकाश में तैर रहे थे बादल,
उन पर चले जा रहे थे नारद,
दैविक संगीत का लिखने नया अध्याय,
गाते, हँसते, वीणा बजाते, चतुर नारद।
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