मत हो परेशान, हँसो…यह जिन्दगी तो बीतनी है बीत जाएगी,हँस के जियोगे तो आसान हो जाएगी,मत हो परेशान, हँसो… मुश्किलें तो आनी हैं, आयेंगी,हँस के करोगे सामना तो चली जाएँगी,मत हो परेशान, हँसो… गम तो आने हैं और जाने भी,हँस के सहोगे तो फुर्र होंगें जल्दी,मत हो परेशान, हँसो…
वो कहानियाँ
बन्द दरवाज़ों के पीछे,छुपी हैं कहानियाँ,दे दस्तक उकसातीं हमें,खोलने को कुंडियाँ,करतीं हैं गुदगुदी,फुसफुसाती हैं कान में,बहुत अफसाने छुपे हैं,इन दीवारों और खंबों में। लगता है डर,जब खुलेंगें यह खिड़की-दरवाज़े,क्या-क्या कहर ढाएँगे,वह छुपे हुए अफसाने,रहने दो इन कहानियों को,तुम कहानी,इन राज़ों की सिहरन ही है,बहुत डरावनी। जी लो जिंदगी को जैसे यह ख्वाब है,इसके पन्नों को समझने काContinue reading वो कहानियाँ →
कहाँ है घर मेरा
ना मन्दिर का आँगन,ना बाबुल की गलियाँ,रुकें वहीं कदम,जहाँ दिल को मिले दस्तक,थम जा, ठहर जा,यही है तेरी सुकून की छैया। ओढ़ ले, सोख ले,समय का क्या पता,धूप होगी या छाँव,जिन्दगी का अगला पन्ना। भींच ले सुकून कोमन में ऐसे,फिसल ना जाए बनरेत के दाने जैसे। फिर धूप हो या छाँव,किसको है चिंता,मिलेगा तुझे सुकून,क्योंकिContinue reading कहाँ है घर मेरा →
तिल-तिल होता विनाश
Poem dedicated to “Nirbhaya”, Dec 2012 सड़क के किनारे,राहगीरों के सामने,गिरीं दो जिंदा लाश,जिन पर कहर चुका था नाच। अवस्था थी कुछ नग्न सी,जान थी कुछ बाकी सी,किसी ने था नोंचा खसोटा,वहशी चूस गए थे बोटी-बोटी भी। यह तो थीं जिंदा लाश,पर राहगीर थे पूरे मुर्दा,उन दोनों के तन ढकने,कोई ना आया सामने। मर गयाContinue reading तिल-तिल होता विनाश →
यादों की पतंग
उड़ी उड़ी उड़ीमेरी यादों की पतंग उड़ी। बाबा का चश्मा झँझोड़,दादी को कर गुदगुदी, हँसी,मेरी यादों की पतंग उड़ी। नानी की गोदी में छिप,नाना की आँखों से बचीमेरी यादों की पतंग उड़ी। स्कूल का डोसा और पैटी,दुनिया में कहीं नहीं मिली,मेरी यादों की पतंग उड़ी। हॉस्टल का मिल्स-अँड-बून क्लब,कॉलेज में क्लासेस कर बंक, भगी,मेरी यादोंContinue reading यादों की पतंग →
बहने दें
बहने दें अश्कों कों,कमसकम दिलवाले तो हैं हम;बहने दें दरिया को,गुनगुनाने का रखती तो है दम;बहने दें हवा को,बादलों से जूझने का नहीं है डर;बहने दें जिंदगी को,कमसकम ठरहें तो नहीं हैं हम;और बहने दें लबों पर मुस्कान को,ज़माना नहीं जान पाएगाआपके और हमारे गम।
संगीत की लहर
उठी कहीं एक,मध्यम सी लहर,शब्दों के संगम की लहर,धुनों के बंधन की लहर,मन के डोलने की लहर,तन के थिरकने की लहर,उठी कहीं एकसंगीत की लहर।
हाय रे ये मन
भटक रहा है मन,बेचैन बहुत है मन,पागल घोड़े की तरह,दौड़ रहा है मन। सपने चले गए छोड़,कुछ नहीं बाद इस मोड़,अकेले बादल की तरह,उड़ा जा रहा है मन,भटक रहा है मन,बेचैन बहुत है मन। सही क्या है नहीं पता,सही कौन है नहीं पता,रूखे बालों की तरह,उलझा हुआ है मन,भटक रहा है मन,बेचैन बहुत है मन।Continue reading हाय रे ये मन →