Poem dedicated to “Nirbhaya”, Dec 2012 सड़क के किनारे,राहगीरों के सामने,गिरीं दो जिंदा लाश,जिन पर कहर चुका था नाच। अवस्था थी कुछ नग्न सी,जान थी कुछ बाकी सी,किसी ने था नोंचा खसोटा,वहशी चूस गए थे बोटी-बोटी भी। यह तो थीं जिंदा लाश,पर राहगीर थे पूरे मुर्दा,उन दोनों के तन ढकने,कोई ना आया सामने। मर गयाContinue reading तिल-तिल होता विनाश
यादों की पतंग
उड़ी उड़ी उड़ीमेरी यादों की पतंग उड़ी। बाबा का चश्मा झँझोड़,दादी को कर गुदगुदी, हँसी,मेरी यादों की पतंग उड़ी। नानी की गोदी में छिप,नाना की आँखों से बचीमेरी यादों की पतंग उड़ी। स्कूल का डोसा और पैटी,दुनिया में कहीं नहीं मिली,मेरी यादों की पतंग उड़ी। हॉस्टल का मिल्स-अँड-बून क्लब,कॉलेज में क्लासेस कर बंक, भगी,मेरी यादोंContinue reading यादों की पतंग →
बहने दें
बहने दें अश्कों कों,कमसकम दिलवाले तो हैं हम;बहने दें दरिया को,गुनगुनाने का रखती तो है दम;बहने दें हवा को,बादलों से जूझने का नहीं है डर;बहने दें जिंदगी को,कमसकम ठरहें तो नहीं हैं हम;और बहने दें लबों पर मुस्कान को,ज़माना नहीं जान पाएगाआपके और हमारे गम।
संगीत की लहर
उठी कहीं एक,मध्यम सी लहर,शब्दों के संगम की लहर,धुनों के बंधन की लहर,मन के डोलने की लहर,तन के थिरकने की लहर,उठी कहीं एकसंगीत की लहर।
हाय रे ये मन
भटक रहा है मन,बेचैन बहुत है मन,पागल घोड़े की तरह,दौड़ रहा है मन। सपने चले गए छोड़,कुछ नहीं बाद इस मोड़,अकेले बादल की तरह,उड़ा जा रहा है मन,भटक रहा है मन,बेचैन बहुत है मन। सही क्या है नहीं पता,सही कौन है नहीं पता,रूखे बालों की तरह,उलझा हुआ है मन,भटक रहा है मन,बेचैन बहुत है मन।Continue reading हाय रे ये मन →
डरपोक झा
एक था कव्वा कायर सा,नाम था उसका डरपोक झा,डरता था वो उड़ने से,तेज़ था पर वो लड़ने में। एक दिन बोली चींटी उससे,सैर कराओ हवा में उड़के,डरपोक झा बोला चिल्ला के,रुपये लूँगा बहुत सारे। चींटी बोली नोट दिखा के,नहीं अकड़ते मेरे प्यारे,यह ले सौ रुपये का नोट,चल अब जल्दी हवा की ओर। डरपोक झा अबContinue reading डरपोक झा →
मियाँ मकसूद की बेगम
मियाँ मकसूद चले हकीम के पास,पूछना था इश्क़ का इलाज़। कहानी कुछ इस तरह से है… मियाँ थे गए देखने लड़की,पसन्द आ गयी उसकी अम्मी,और दिल साला गया मचल,गाने लगा गज़ल पे गज़ल,समझाने पर भी जब ना समझा,मियाँ ने कहा अब है कुछ करना,चल दिये हकीम के पास,की अब वही करेंगे इसका इलाज़,बताया मसला हकीमContinue reading मियाँ मकसूद की बेगम →
चतुर नारद
आकाश में था बादल,उस पर थे लेटे नारद,उठते, बैठते, करवटें बदल,ऊब गये थे बेचारे नारद। तीनों लोकों का कर भ्रमण्ड,चुगलियाँ कर तोड़ भ्रम,लोगों में भर द्वेष अनंत,कोहराम फैला चुके थे नारद। तब शिव और हरि से पड़ी डांट,बोले बढ़ाये झगड़े तो सजा जान,गुफा में रहोगे दिन-रात,फँस गए थे बेचारे नारद। लगे टहलने परेशान मन,बेखबर उड़तेContinue reading चतुर नारद →